*समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः॥*
_अध्याय 12, श्लोक 16_
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भावार्थ:
जो शत्रु-मित्र में और मान-अपमान में सम है तथा सर्दी, गर्मी और सुख-दुःखादि द्वंद्वों में सम है और आसक्ति से रहित है॥
सुप्रभातम् 🌅
🕉श्री कृष्णम शरणमम् 🕉
*अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥*
_अध्याय 12, श्लोक 14_
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भावार्थ:
जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध चतुर, पक्षपात से रहित और दुःखों से छूटा हुआ है- वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है॥
🕉 वसुधैव कुटुम्बकम 🕉
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